सिर्फ 5.5 लाख से शुरू किया काम, आज 200 करोड़ की कंपनी के मालिक! इस डिप्लोमा धारक की कहानी आपको भी हैरान कर देगी

सिर्फ 5.5 लाख से शुरू किया काम, आज 200 करोड़ की कंपनी के मालिक! इस डिप्लोमा धारक की कहानी आपको भी हैरान कर देगी

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क्या आपने कभी सोचा है कि एक छोटे से शहर का लड़का सिर्फ 5.5 लाख रुपये से काम शुरू कर 200 करोड़ का कारोबारी साम्राज्य खड़ा कर सकता है? यह अविश्वसनीय कहानी है तमिलनाडु के बी. विजयराघवन की, जिन्होंने अपनी लगन और मेहनत से एक ऐसा मुकाम हासिल किया है जो आज के युवाओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा है।

एक पुरानी मशीन से की थी शुरुआत

साल 1995 में, सिर्फ 21 साल की उम्र में, टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर चुके विजयराघवन ने तमिलनाडु के तिरुपुर में अपनी एक बुनाई यूनिट शुरू की। उनके पास सिर्फ 5.5 लाख रुपये की पूंजी और एक पुरानी मशीन थी। अपने माता-पिता के नाम पर उन्होंने अपनी कंपनी का नाम "बीएस अपैरल" रखा, जो बाद में "बीवीके एक्‍सपोर्ट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड" बन गई।

शुरुआती दौर में वे सिर्फ सूती धागे को कपड़े में बुनकर दूसरे निर्माताओं को बेचते थे, लेकिन जल्द ही उन्होंने टी-शर्ट और ट्रैक पैंट बनाना शुरू कर दिया। उनके अनोखे डिजाइन ने उन्हें निर्यात बाजार में पहचान दिलाई और उनका कारोबार धीरे-धीरे बढ़ता चला गया।

4 लाख पीस की मासिक उत्पादन क्षमता

आज विजयराघवन की कंपनी की मासिक उत्पादन क्षमता 3,000 पीस से बढ़कर 4 लाख पीस तक पहुंच गई है। उनकी फैक्ट्री में 45 बुनाई मशीनें और 850 सिलाई मशीनें हैं, जिनमें 1,600 से ज्यादा लोग काम करते हैं। उनकी कंपनी आज वैन ह्यूसेन, प्यूमा, रेमंड, बॉस जैसे विश्व प्रसिद्ध ब्रांड्स के लिए कपड़े बनाती है।

बांस के रेशे से बनाया अनोखा ब्रांड

साल 2010 में, विजयराघवन ने अपनी पत्नी लावण्या के नाम पर अपना खुद का इनरवियर ब्रांड "लावोस" (Lavos) लॉन्च किया। इस ब्रांड की खासियत है कि इसके उत्पाद बांस के रेशे से बने हैं, जो कपास से भी ज्यादा नरम होते हैं और नमी व दुर्गंध-रोधी होते हैं। उन्होंने यह अनूठा फाइबर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से मंगाया। आज "लावोस" के उत्पाद अमेजन, फ्लिपकार्ट और मिंत्रा जैसी ई-कॉमर्स साइटों पर उपलब्ध हैं और रोजाना 1,500 से ज्यादा पीस बिकते हैं।

समाज और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी

विजयराघवन सिर्फ एक सफल कारोबारी नहीं हैं, बल्कि वे पर्यावरण और समाज के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। उनकी फैक्ट्री पूरी तरह से सौर और पवन ऊर्जा से चलती है और वे अतिरिक्त बिजली राज्य बिजली बोर्ड को बेचते हैं। वे 95% अपशिष्ट जल को रीसाइकिल करके दोबारा इस्तेमाल करते हैं। उनका सपना है कि वे अपने गृह नगर राजपालयम में सिर्फ महिलाओं के लिए एक ऐसी इकाई स्थापित करें, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।

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