सिर्फ ₹17,000 की नौकरी को कहा अलविदा! अब मधुमक्खी पालन से सालाना ₹17 लाख का टर्नओवर, पढ़िए बिजय कुमार की सक्सेस स्टोरी!

सिर्फ ₹17,000 की नौकरी को कहा अलविदा! अब मधुमक्खी पालन से सालाना ₹17 लाख का टर्नओवर, पढ़िए बिजय कुमार की सक्सेस स्टोरी!

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सफलता की मिसाल: ओडिशा के अंगुल जिले के बिजय कुमार बीर की कहानी उन सभी के लिए एक मिसाल है जो अपनी जमी-जमाई नौकरी छोड़कर नए रास्ते पर चलने से डरते हैं। नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (NALCO) में काम करने वाले बिजय ने ₹17,000 की मासिक सैलरी वाली नौकरी को छोड़कर मधुमक्खी पालन का पेशा अपनाया, जिससे आज वह सालाना ₹17 लाख का टर्नओवर कर रहे हैं।

बढ़ती महंगाई ने नौकरी छोड़ने को मजबूर किया

बिजय कुमार बीर ने NALCO के रखरखाव विभाग में चार साल तक काम किया। ₹17,000 की फिक्स्ड सैलरी पर लगातार बढ़ती महंगाई के सामने गुज़ारा करना मुश्किल हो गया था।

इसी मजबूरी में उन्होंने अपने मामा सुरेश चंद से बचपन में (कक्षा 9 में) सीखी मधुमक्खी पालन की कला को अपनाने का फैसला किया। आज, बिजय सिर्फ शहद बेचकर ही नहीं, बल्कि:

  • मधुमक्खी पालन के उपकरण बेचकर।
  • सरकारी संस्थानों में मास्टर ट्रेनर के तौर पर ₹5,000 प्रति सेशन लेकर प्रशिक्षण देकर भी अच्छी कमाई कर रहे हैं।

उनकी मेहनत को देखते हुए राज्य सरकार ने 2023 में उन्हें 'मुख्यमंत्री कृषि उद्योग योजना' के तहत सम्मानित भी किया था।

वैज्ञानिक नज़रिए से आया बड़ा बदलाव

बिजय कुमार पारंपरिक तरीके के बजाय आधुनिक मधुमक्खी पालन के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। इसी वैज्ञानिक नज़रिये से उनकी दक्षता बढ़ी है:

  • वह अपिस सेराना इंडिका प्रजाति की मधुमक्खियां पालते हैं जो 42 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी पनप सकती हैं।
  • नवंबर और जनवरी के बीच, प्रत्येक कॉलोनी (लकड़ी के बक्से में) 13 किलो से अधिक शहद देती है।
  • वह जल्द ही कॉलोनियों की संख्या 350 से बढ़ाकर 500 करने की योजना बना रहे हैं।
  • वह एक्सट्रैक्टर जैसी आधुनिक मशीनों का उपयोग करते हैं, जिससे छत्ते दोबारा उपयोग के लिए सुरक्षित रहते हैं, जबकि पारंपरिक तरीके में छत्ते बर्बाद हो जाते थे।

साल भर का तगड़ा 'जुगाड़': किसानों को भी फायदा

बिजय कुमार ने साल भर की कमाई का एक शानदार तरीका अपनाया है। वह मौसमी खेती के अनुसार अपने छत्तों को किसानों की अनुमति से अलग-अलग कृषि क्षेत्रों में स्थापित करते हैं:

  • अक्टूबर-दिसंबर: सरसों के खेत
  • जनवरी-फरवरी: सहजन के खेत
  • मार्च-जुलाई: लीची, करंजा और तिल के खेत

इससे न केवल बिजय को विभिन्न प्रकार का शहद मिलता है, बल्कि मधुमक्खियां परागण (Pollination) करके किसानों की फसल की उपज बढ़ाने में भी मदद करती हैं। यही कारण है कि किसान खुशी-खुशी उन्हें छत्ते रखने की अनुमति दे देते हैं।

दूसरों को भी बना रहे हैं आत्मनिर्भर

बिजय ने 2004 से 2016 तक OUAT से आधुनिक तरीके सीखने के बाद 2018 तक अपनी कॉलोनियों की संख्या 100 तक बढ़ाई। 2022 से वह खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) और RSETI के लिए मास्टर ट्रेनर के रूप में काम कर रहे हैं, जहां वह 400 से अधिक शहद उत्पादकों को प्रशिक्षित कर चुके हैं।

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