जूडो खेलने पर परिवार ने उठाए थे सवाल, फिर मां बनीं ढाल; आज उसी बेटी ने रचा इतिहास, बनीं वर्ल्ड नंबर 1

जूडो खेलने पर परिवार ने उठाए थे सवाल, फिर मां बनीं ढाल; आज उसी बेटी ने रचा इतिहास, बनीं वर्ल्ड नंबर 1

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दिल्ली के मुनिरका की तंग गलियों से निकलकर, 20 साल की हिमांशी टोकस ने भारतीय जूडो में एक नया और स्वर्णिम इतिहास रच दिया है। जब 18 साल की उम्र में उनके परिवार ने जूडो खेलने पर सवाल उठाए, तो उनकी मां ने कहा, "यह साहस और समानता से कहीं ज्यादा कीमती है!" इसी विश्वास ने हिमांशी को आगे बढ़ने की ताकत दी।

आंख की चोट भी नहीं रोक पाई रास्ता

हिमांशी की यह यात्रा संघर्ष से भरी रही। उन्हें एक बार आंख में चोट भी लगी, जिसने उनके रास्ते को मुश्किल बना दिया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 2019 में उन्होंने सब-जूनियर नेशनल्स में सिल्वर मेडल जीता और 2020 में खेलो इंडिया यूथ गेम्स में पांचवां स्थान हासिल किया।

विश्व नंबर 1 बनने का सफर

इन सफलताओं के बाद, हिमांशी को भोपाल के SAI सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में जगह मिली। जापान में ट्रेनिंग कैंप्स ने उनकी कला को और निखारा। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने कासाब्लांका अफ्रीकन ओपन, ताइपे जूनियर एशियन कप और एशियन जूनियर चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर लगातार सफलता हासिल की। अब 610 पॉइंट्स के साथ, वह जूनियर महिलाओं की 63 किलोग्राम कैटेगरी में विश्व नंबर 1 बन गई हैं। वह भारत की पहली जूडोका हैं जिन्होंने यह मुकाम हासिल किया है।

यह सिर्फ एक मेडल नहीं, बल्कि भारतीय जूडो के एक नए युग की शुरुआत है। हिमांशी की कहानी हर बेटी को यह संदेश देती है कि अगर आप सपने देखें और उनके लिए लड़ें, तो उन्हें जरूर जीत सकती हैं। उनकी सफलता उनकी मां की हिम्मत और खुद की कड़ी मेहनत का नतीजा है।

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