IAS अधिकारी राजर्षि शाह, जो तेलंगाना के आदिलाबाद जिले के जिलाधिकारी हैं, आज युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन गए हैं। एक बार जब उन्होंने अचानक कुछ सरकारी स्कूलों का निरीक्षण किया, तो वहां के हालात देखकर वह दंग रह गए। स्कूल में बच्चों की संख्या कम थी और 11 साल तक के बच्चे क्लास में तंबाकू का सेवन कर रहे थे। इस भयावह स्थिति को देखते हुए, उन्होंने बच्चों का भविष्य संवारने का बीड़ा उठाया और 'आरोग्य पाठशाला' नाम की एक अनूठी पहल शुरू की।
आरोग्य पाठशाला से मिला नया जीवन
द बेटर इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजर्षि शाह ने सुबह की प्रार्थना सभा का नाम बदलकर 'आरोग्य पाठशाला' कर दिया। इस दौरान हर दिन अलग-अलग विषयों पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिससे बच्चों को स्वास्थ्य और जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जानकारी मिलती है।
- सोमवार: व्यक्तिगत स्वच्छता
- मंगलवार: स्वास्थ्य और पोषण
- बुधवार: तनाव प्रबंधन और मानसिक स्वास्थ्य
- गुरुवार: नशा मुक्ति (एंटी-ड्रग्स)
- शुक्रवार: बीमारियों से बचाव
- शनिवार: आत्मविश्वास और नेतृत्व
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बच्चों की जिंदगी में आया बड़ा बदलाव
इस पहल का नतीजा यह हुआ कि जिन बच्चों का पढ़ाई से कोई रिश्ता नहीं था, वे अब स्कूल आने लगे। छात्रों की उपस्थिति जो पहले 50% से भी कम थी, अब बढ़कर 70% तक पहुंच गई है। बहुत से छात्रों में स्कूल जाने की इच्छा बढ़ने लगी। 14 नवंबर 2024 (बाल दिवस) को शुरू हुई यह पहल आज करीब 250 से ज्यादा स्कूलों में चलाई जा रही है, जिसने ग्रामीण इलाकों के बच्चों के स्कूल और पढ़ाई के प्रति नजरिए को पूरी तरह बदल दिया है।
क्यों पड़ी 'आरोग्य पाठशाला' की जरूरत?
आदिलाबाद भारत के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है। यहां की करीब 45% आबादी अनुसूचित जातियों और जनजातियों की है, जो गरीबी और कुपोषण से जूझ रही है। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के साथ-साथ, यहां के लोगों में, खासकर बच्चों में, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता भी बहुत कम थी। शाह ने बताया कि छोटे-छोटे बच्चे भी तंबाकू और अन्य नशों के आदी हो चुके थे। इसी गंभीर समस्या को देखते हुए 'आरोग्य पाठशाला' की शुरुआत हुई, ताकि नई पीढ़ी को नशे से दूर रखा जा सके और उन्हें बेहतर जीवन दिया जा सके।