हिमाचल प्रदेश ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। यह राज्य अब त्रिपुरा, मिजोरम और गोवा के बाद चौथा ऐसा राज्य बन गया है, जिसने पूर्ण कार्यात्मक साक्षरता का दर्जा हासिल कर लिया है। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को इस बड़ी सफलता की घोषणा की। उन्होंने बताया कि यह उपलब्धि सरकार, समाज और स्वयंसेवकों के सामूहिक प्रयासों का परिणाम है।
शिक्षा सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता का माध्यम
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के मौके पर एक वर्चुअल संबोधन में धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि शिक्षा ही सभ्यता की नींव है। उन्होंने एक साक्षर, आत्मनिर्भर और विकसित भारत के निर्माण के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धता जताने का आह्वान किया। इस साल के कार्यक्रम का विषय “डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना” था, जिसमें डिजिटल तकनीक की भूमिका पर जोर दिया गया।
मंत्री ने बताया कि भारत की साक्षरता दर 2011 में 74% से बढ़कर 2023-24 में 80.9% हो गई है। हालांकि, उन्होंने कहा कि सच्ची प्रगति तभी होगी जब हर नागरिक के लिए साक्षरता एक जीवंत वास्तविकता बन जाएगी। उन्होंने 'उल्लास - नव भारत साक्षरता कार्यक्रम' की भी तारीफ की, जिसमें 3 करोड़ से ज्यादा शिक्षार्थियों और 42 लाख स्वयंसेवकों ने भाग लिया है।
पहाड़ी इलाकों में भी साक्षरता का कमाल
शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने भी इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्यों में यह उपलब्धि हासिल हुई है। उन्होंने कहा कि सीमित पहुंच, शिक्षकों और संसाधनों की चुनौतियों के बावजूद, इन राज्यों ने समुदायों को संगठित किया, स्वयंसेवकों ने आगे बढ़कर काम किया और सरकार ने पूरा सहयोग दिया।
जयंत चौधरी ने कहा कि इस सामूहिक उपलब्धि से साबित होता है कि दृढ़ निश्चय से भौगोलिक बाधाओं को भी दूर किया जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत में साक्षरता की अवधारणा अब डिजिटल साक्षरता को भी शामिल करती है। उन्होंने कहा कि भारत ने अपने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिए शिक्षा और समावेश को बढ़ावा देकर दुनिया के लिए एक मिसाल कायम की है। भारत की डिजिटल क्रांति ने जो उपलब्धियां एक दशक में हासिल की हैं, उन्हें पाने में शायद 50 साल लगते।