मध्यप्रदेश के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (जेएनकेवी), जबलपुर ने एक ऐसा कमाल कर दिखाया है, जो भारतीय किसानों की तकदीर बदल सकता है। वैज्ञानिकों ने एक अनोखा काला मक्का विकसित किया है, जो सिर्फ फसल नहीं, बल्कि पोषण का खजाना है। यह मक्का आयरन, प्रोटीन, कैल्शियम और जिंक जैसे जरूरी तत्वों से भरपूर है, और इसे 'सुपरफूड' के तौर पर देखा जा रहा है।
कम पानी में बंपर पैदावार, दोगुनी कीमत!
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह काला मक्का सूखा प्रतिरोधी है और इसकी खेती में पारंपरिक मक्के के मुकाबले बहुत कम पानी और देखभाल की जरूरत होती है। यह खास तौर पर मध्यप्रदेश जैसे क्षेत्रों के लिए एक वरदान है। इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी बाजार में मांग और कीमत है। जहां सामान्य मक्के के दाम कम होते हैं, वहीं काले मक्के की कीमत दोगुनी है।
एक एकड़ में 70 हजार की कमाई
जेएनकेवी के मुताबिक, किसान एक एकड़ में 20 से 25 क्विंटल काले मक्के की पैदावार कर सकते हैं। इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलने से, किसान प्रति एकड़ 50,000 से 70,000 रुपये तक की कमाई कर सकते हैं। यह कमाई किसानों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में बहुत मददगार साबित हो सकती है।
इसके साथ ही, यह काला मक्का कई तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है। इसका उपयोग पॉपकॉर्न, आटा और विभिन्न स्वास्थ्यवर्धक स्नैक्स बनाने में हो रहा है। सरकार और निजी कंपनियां इस अनोखी फसल को बढ़ावा दे रही हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल रही है। यह नवाचार न केवल किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर है, बल्कि यह एक स्वस्थ और समृद्ध भारत का प्रतीक भी बन रहा है।