भारत के सूखे और संकटग्रस्त इलाकों में खेती अक्सर महिलाओं के धैर्य और संकल्प से ही टिकती है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की एक साधारण महिला किसान संगीता पांडेय ने यह साबित कर दिया है कि मिट्टी की देखभाल सिर्फ खेती नहीं बदलती, बल्कि जीवन और पहचान भी बदल देती है। पउहर गांव की 38 वर्षीय संगीता की बंजर पड़ी जमीन आज उपज देने लगी है और उनका जीवन मजबूरी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ चुका है।
खेती जब थी मजबूरी
कई वर्षों तक 2.48 एकड़ जमीन पर खेती करने वाली संगीता के लिए यह घाटे का सौदा था। उन्हें न बेहतर बीज मिलते थे, न मिट्टी की ताकत थी। बाजार से महंगे और अक्सर खराब बीज खरीदने पड़ते थे। बिचौलियों पर निर्भरता के कारण सही दाम नहीं मिलता था। किसी भी सीजन में उनकी मासिक कमाई मुश्किल से 3 हजार रुपये पहुंचती थी। वह भैराम बाबा स्वयं सहायता समूह की सदस्य थीं, लेकिन खेती में सुधार की कोई दिशा नहीं मिल रही थी।
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'बीज से बाजार' पहल ने बदली जिंदगी
साल 2023 में संगीता की जिंदगी में टर्निंग पॉइंट आया, जब उन्हें बुंदेली महिला प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के माध्यम से 'बीज से बाजार' (Beej to Bazaar) पहल से जोड़ा गया। यहीं से उन्हें संरचित प्रशिक्षण और तकनीकी मार्गदर्शन मिलना शुरू हुआ। इस प्रशिक्षण में उन्हें बीज चयन, बीज संरक्षण, भूमि तैयारी, फसल चक्र और बाजार की तैयारी जैसे विषयों पर विस्तृत जानकारी दी गई। उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र और सरकारी विभागों से भी जोड़ा गया।
बीज आत्मनिर्भरता बनी आधार
पहले जो संगीता हर सीजन में बीज खरीदती थीं, अब उन्होंने बीज बचाने और सुरक्षित रखने की विधि सीखी। नीम पत्तों की परत और मिट्टी के घड़ों में सूखा भंडारण जैसी तकनीकों से उन्होंने 25 अन्य महिला किसानों के साथ मिलकर सामुदायिक बीज विनिमय शुरू किया। इससे उनके बीज खर्च में लगभग 80 प्रतिशत की कमी आई।
तकनीकी विशेषज्ञों की मदद से उन्होंने देशी खाद, ढैंचा आधारित हरी खाद और मिश्रित खेती जैसे तरीकों से खेतों में सुधार किया, जिससे मिट्टी की नमी बढ़ी, उत्पादन लागत 30 प्रतिशत तक कम हुई और पैदावार में स्थिरता आने लगी।
अब वार्षिक आय ₹85,000, बनीं 'संचालिका दीदी'
पहले अपनी उपज बिचौलियों को बेचने वाली संगीता अब 150 महिला किसानों के साथ मिलकर समूह में बिक्री करती हैं और सीधे मंडी में व्यापार करती हैं। कंपनी के मंडी लाइसेंस और रियल टाइम कीमत अपडेट के लिए बने व्हाट्सऐप ग्रुप ने बिचौलियों की निर्भरता खत्म कर दी है।
आज संगीता को कंपनी में संचालिका दीदी की भूमिका मिली है। वह प्राथमिक प्रसंस्करण इकाइयों का संचालन सीख चुकी हैं और आसपास की किसानों को प्रशिक्षण देती हैं।
- पहले वार्षिक आय: लगभग ₹50,000
- अब वार्षिक आय: लगभग ₹85,000
आज संगीता गांव में 'महिला किसान' के रूप में पहचानी जाती हैं और तीन गांवों की महिलाओं को वैज्ञानिक खेती बताती हैं। उनका कथन है: "पहले खेती मजबूरी थी। अब यही मेरा रोजगार है, जो मेरी जिंदगी और मेरे परिवार का भविष्य बेहतर बना रहा है।"
