रोज़ 400 मीटर के रास्ते पर मौत का ख़तरा! बाघों के आतंक से बच्चों को बचाने के लिए ढाल बनीं 4 महिलाएं, सीक्रेट मिशन की कहानी!

रोज़ 400 मीटर के रास्ते पर मौत का ख़तरा! बाघों के आतंक से बच्चों को बचाने के लिए ढाल बनीं 4 महिलाएं, सीक्रेट मिशन की कहानी!

Title

हिम्मत को सलाम! महाराष्ट्र के चंद्रपुर ज़िले के मोहोर्ली वन क्षेत्र में स्थित सीतारामपेठ गांव में हर कोई बाघों के ख़ौफ़ में जीता है। ताडोबा बाघ अभ्यारण्य क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इस गांव के चारों ओर घना जंगल है, जहाँ करीब 12-13 बाघ घूमते रहते हैं।

स्कूल का 400 मीटर का रास्ता, जो है सबसे खतरनाक

इस गांव के 11 छात्र 7 किलोमीटर दूर स्थित मुधोली में पढ़ने जाते हैं। इसके लिए उन्हें गांव से बस स्टैंड तक 400 मीटर की कच्ची सड़क पर जाना पड़ता है। एक तरफ घना जंगल है, तो दूसरी तरफ खेत, और रात में कोई स्ट्रीट लाइट नहीं। गांव वालों को इस सड़क पर अक्सर बाघ दिखाई देते हैं, जो कभी मवेशियों पर हमला करते हैं, तो कभी सड़क पर टहलते दिखते हैं।

10वीं के छात्र सुशांत नाट बताते हैं, "पिछले महीने हमने गांव के पास एक बाघ को गाय का पीछा करते देखा। हम सब डरकर गांव की ओर भागे। हम छोटे बच्चे हैं, वह हम पर भी हमला कर सकता है, इसलिए स्कूल जाना मुश्किल हो रहा था।"

वन विभाग ने नहीं की मदद, तब 4 महिलाओं ने उठाई जिम्मेदारी

बच्चों के डर और वन विभाग से सुरक्षा गार्ड की मांग पूरी न होने के बाद, गांव की चार महिलाओं ने खुद ही बच्चों की सुरक्षा का बीड़ा उठाया।

ये चार हिम्मत वाली महिलाएं हैं: किरण गेडाम, वेणू रंदये, रीना नाट और सीमा मडावी।

हाथ में लाठी और मशाल लेकर करती हैं सुरक्षा

यह सुरक्षा घेरा बच्चों को सुरक्षित स्कूल पहुँचाने और घर वापस लाने के लिए है।

  • सुबह का सफ़र: सुबह 9:45 बजे बस आने पर, ये चार महिलाएं बच्चों को चारों ओर से घेरे रहती हैं और उन्हें बस स्टैंड तक ले जाती हैं। बस आने तक वे सुरक्षा करती हैं।
  • शाम का सफ़र: शाम करीब 6:45 बजे, जब घना अंधेरा हो जाता है, ये चारों महिलाएं हाथ में लाठी और टॉर्च लेकर बच्चों को लेने बस स्टैंड जाती हैं।
  • जानवरों को भगाना: वे सड़क से गुजरते समय टॉर्च से जानवरों पर नज़र रखती हैं। लाठियों से शोर मचाती हैं, चिल्लाती हैं और आपस में बातें करती हैं ताकि बाघ दूर भाग जाए।

इनमें से एक महिला किरण गेडाम कहती हैं, "बच्चों को लेने जाते समय हमें कई बार बाघ दिखाई देता है, लेकिन हम बच्चों को नहीं बताते। लौटते समय अगर हमें बाघ दिख जाए तो हम चिल्लाते हैं। गांव पहुंचने तक हमें डर लगा रहता है। गांव पहुंचते ही लगता है कि हम बाल-बाल बच गए।" अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए इन महिलाओं की पहल पूरे इलाके के लिए एक मिसाल बन गई है।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने