यह कहानी है बांदीपोरा की आसिया बेगम की, जिन्हें जिंदगी ने कई बार गहरे झटके दिए। पति को खोने और फिर घर जल जाने के बाद, लोग कहते थे कि उनकी जिंदगी खत्म हो गई है। लेकिन आसिया ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने पिता के घर की छोटी सी छत पर मशरूम और सब्ज़ियों की खेती शुरू की। आज यह छोटा सा काम उन्हें हर महीने ₹35,000 से ₹40,000 कमाकर दे रहा है और वह कश्मीर की हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं।
मातम और तबाही का दौर
साल 2015 में, 32 वर्षीय आसिया बेगम पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। नॉर्थ कश्मीर में एक बंदूक की लड़ाई में उन्होंने भारतीय सेना में कार्यरत अपने पति को खो दिया। दो साल बाद, सामाजिक दबाव में उन्होंने दूसरी शादी की, लेकिन एक और बड़ी त्रासदी ने उन्हें घेर लिया। एक भीषण आग ने उनके पूरे घर को जलाकर राख कर दिया।
बिना घर, बिना आय और ससुराल से कोई समर्थन न मिलने के कारण, आसिया बांदीपोरा के नुसू में अपने पिता के घर लौट आईं। वह याद करती हैं, "लोग कहते थे कि मेरी जिंदगी खत्म हो गई है, वे मानते थे कि मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती। लेकिन मेरे पिता ने मुझ पर विश्वास किया।"
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छत पर बनाई अपनी नई दुनिया
पति की बटालियन के कमांडेंट के सुझाव पर, उन्होंने भावनात्मक तनाव से निपटने के लिए मशरूम की खेती शुरू की। अपने 10x10 फीट के कमरे में मशरूम की सफल खेती के बाद, उन्होंने वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करके सब्जियां उगाने का फैसला किया। जमीन न होने के कारण चुनौती आई, लेकिन आसिया ने हार नहीं मानी।
उन्होंने घर की छत पर मशरूम के बचे हुए कम्पोस्ट को आधार मिट्टी के रूप में उपयोग करना शुरू किया। शुरुआती परेशानियों के बाद, उन्होंने प्लास्टिक की टोकरियों में सब्जियां उगाना शुरू किया। उनका यह 15x25 वर्ग फुट का रूफटॉप फार्म अब बांदीपोरा के सबसे प्रेरणादायक सफल व्यवसायों में से एक है।
₹40 हज़ार तक की आय और मेंटरशिप
आसिया अब हर महीने 50 से 60 किलो मशरूम का उत्पादन करती हैं। वह केवल अपना उत्पाद ही नहीं बेचतीं, बल्कि अन्य महिलाओं के मशरूम की मार्केटिंग में भी मदद करती हैं। कृषि अधिकारी अब नए किसानों को उनसे मार्गदर्शन लेने के लिए भेजते हैं।
उनकी मासिक आय कई स्रोतों से आती है: मशरूम से लगभग ₹20,000, सब्ज़ियों से ₹10,000, सीडलिंग (पौधों) से ₹7,000 से ₹10,000 और घर में बने मसालों से अतिरिक्त कमाई। आसिया कहती हैं कि वह यह काम अपने चार बच्चों को बेहतर जीवन देने और अपने दुख को भूलने के लिए जुनून के साथ करती हैं। आज आसिया ने रूढ़िवादी ग्रामीण कश्मीर में एक ऐसी मिसाल कायम की है जो लाखों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रही है।

