Never Say Die! 32 वर्षीय गुरमुख सिंह के लिए असफलता कभी हार मानने का कारण नहीं बनी, बल्कि यह उनके लक्ष्य के एक कदम और करीब आने जैसा था। 12वीं कक्षा पूरी करने के बाद, वह भारतीय सेना में एक सिपाही (Sepoy) के रूप में शामिल हुए, लेकिन उनका दृढ़ संकल्प था कि वह एक दिन अधिकारी (Officer) बनकर रहेंगे।
सातवें प्रयास में बने ऑफिसर
गुरमुख सिंह का यह सफर दिखाता है कि अगर लक्ष्य साध लिया जाए, तो चाहे जितनी असफलताएँ मिलें, अंत में सफलता ज़रूर मिलती है। छह बार असफल होने के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने सातवें प्रयास में अधिकारी बनने का सपना पूरा किया।
गुरमुख सिंह ने अपनी सफलता का श्रेय अनुशासन (Discipline) को दिया। उनका कहना है कि सेना के अनुशासन ने ही उन्हें लगातार प्रयास करते रहने और अपनी कमजोरियों पर काम करने में मदद की, जिसकी वजह से वह इस मुकाम को हासिल कर पाए।
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सिपाही से अधिकारी बनने की मिसाल
एक सिपाही से अधिकारी बनने तक का उनका यह सफर अनगिनत युवाओं के लिए प्रेरणा है, खासकर उन लोगों के लिए जो सोचते हैं कि शुरुआती असफलताएँ अंतिम फैसला होती हैं। गुरमुख सिंह ने साबित कर दिया है कि लगन और कठोर अनुशासन से हर मंजिल हासिल की जा सकती है।
