टैक्सी ड्राइवर की 'नासमझी' से आया आइडिया! अंकित अग्रवाल ने एक-एक जिले को जोड़कर कैसे खड़ी की ₹25000 करोड़ की 'InsuranceDekho'?

टैक्सी ड्राइवर की 'नासमझी' से आया आइडिया! अंकित अग्रवाल ने एक-एक जिले को जोड़कर कैसे खड़ी की ₹25000 करोड़ की 'InsuranceDekho'?

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सफलता की कहानी: InsuranceDekho के सह-संस्थापक अंकित अग्रवाल ने ज़मीनी स्तर पर वितरण (grassroots distribution) और 'कॉकरोच मानसिकता' (cockroach mentality) पर ध्यान केंद्रित करके एक विशाल वितरण नेटवर्क कैसे बनाया, आइए जानते हैं।

जब एक टैक्सी ड्राइवर ने दिया बिजनेस का आइडिया

बात 2016 की है, जब अंकित अग्रवाल बलिया में एक ज़मीन हस्तांतरण के लिए गए थे। पटना एयरपोर्ट से ले जा रहे टैक्सी ड्राइवर से उन्होंने गाड़ी के बीमा के बारे में पूछा। ड्राइवर बार-बार LIC का ज़िक्र कर रहा था। अग्रवाल समझ गए कि ड्राइवर को कार के बीमा (जो अनिवार्य है) के बारे में कोई जानकारी नहीं है, और कार का बीमा भी नहीं हुआ है।

अग्रवाल ने इस घटना से यह निष्कर्ष निकाला, "अगर वह अनिवार्य प्रोडक्ट के लिए नहीं है, तो जो गैर-अनिवार्य प्रोडक्ट हैं, जैसे हेल्थ हो गया, लाइफ हो गया, तो प्रॉब्लम हो गए।" उसी साल InsuranceDekho की सह-स्थापना करते समय उन्होंने इसी समस्या में एक बड़ा अवसर देखा।

अग्रवाल ने तय किया कि जहां 60 बीमा कंपनियाँ अच्छे उत्पाद बना रही हैं, लेकिन उन्हें अंतिम व्यक्ति (लास्ट माइल) तक नहीं पहुंचा पा रही हैं, वह उसी गैप को भरेंगे।

डिस्ट्रीब्यूशन ही एकमात्र रास्ता

गुरुग्राम स्थित InsuranceDekho ने सीधे ग्राहक (D2C) तक जाने के बजाय ऑफलाइन नेटवर्क बनाने का विकल्प चुना, जहाँ एजेंट गाँव-गाँव जाकर लोगों को बीमा की आवश्यकता समझाते हैं।

अग्रवाल ने कहा, "यह निर्माण के लिए अधिक टिकाऊ व्यवसाय था क्योंकि मेरा मानना ​​है कि आज की दुनिया में वितरण (Distribution) ही एकमात्र माध्यम है।"

  • नेटवर्क: आज InsuranceDekho के पास लगभग 3 लाख एजेंट हैं, जो देश के 98% पिनकोड को कवर करते हैं।
  • लक्ष्य: अग्रवाल ने कहा, "हमारा लक्ष्य बहुत स्पष्ट है कि अगले 5 वर्षों में हमें देश के सभी 600,000 गाँवों को कवर करना है।"

उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर में बार-बार आने वाली बाढ़ के बाद उनके एजेंट सबसे पहले लोगों को होम इंश्योरेंस का महत्व समझाने पहुंचे। साथ ही, कोविड-19 महामारी उनके व्यवसाय के लिए एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई, जब लोगों ने स्वास्थ्य और जीवन बीमा को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया। उन्होंने सरकारी पहल और नियामक (Regulator) के समर्थन को भी श्रेय दिया।

'कॉकरोच मानसिकता' और बिहार के संस्कार

अग्रवाल का बचपन बिहार में बीता, जहाँ रोज़ 15-16 घंटे बिजली कटौती होती थी। संयुक्त परिवार था और वे कपड़े तथा आभूषण की छोटी दुकान चलाते थे। उनके दादाजी बच्चों से वादा करते थे कि जो दिन की पहली बिक्री करेगा, उसे शाम को मिठाई मिलेगी। अग्रवाल ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा कि मिठाई का वह लालच उन्हें अच्छा विक्रेता बनाता था।

उन्होंने बताया कि बिहार में बड़े होने से उनके अंदर का डर निकल गया। “अब कुछ भी होता है, मैं कहता हूँ, 'देख लेंगे'।” उन्होंने अपने उद्यमिता के सफर में इवेंट मैनेजमेंट से लेकर टी-शर्ट बेचने तक सब कुछ आजमाया है। इसी को वह ‘कॉकरोच मानसिकता’ कहते हैं।

"मेरा मानना ​​है कि जो टिकता है वही बनाता है। अगर आप जीवित रहते हैं और हर दिन काम पर आते हैं, तो आप दुनिया के 99.99% लोगों से आगे हैं।"

डिजिटल और ऑफलाइन का मिश्रण

अग्रवाल का मानना है कि भारत में ऑफलाइन चैनल लंबे समय तक प्रासंगिक रहेंगे। उन्होंने कहा कि भारत में डिजिटल भी चलेगा, डिजिटल प्लस ऑफलाइन का मिश्रण भी चलेगा और शुद्ध ऑफलाइन भी चलेगा। खासकर स्वास्थ्य बीमा जैसे क्षेत्रों में जहाँ भरोसे की ज़रूरत ज़्यादा होती है, वहाँ मानवीय हस्तक्षेप आवश्यक होगा।

कंपनी ने पहले सभी राज्य की राजधानियों में शुरुआत की, फिर प्रमुख शहरों में और अब अगले दो वर्षों में हर ज़िले तक पहुँचने का लक्ष्य है। पाँच वर्षों में, अग्रवाल InsuranceDekho को सभी 6 लाख गाँवों में ले जाना चाहते हैं।

सफलता का 'Manifestation' और एंड-यूजर से जुड़ाव

भगवद गीता के प्रशंसक अग्रवाल, Manifestation (अभिव्यक्ति) की शक्ति में विश्वास करते हैं। वह हर दिन 5 मिनट मंदिर में प्रार्थना करते हैं और कहते हैं कि उनके दादाजी ने सिखाया था कि "भगवान को हमेशा थैंक यू बोलो। जो भी हुआ, तुमको नहीं पता और क्या हो सकता था।"

प्रतिस्पर्धी बाज़ार में सफल होने के लिए, वह हर तिमाही 10 पार्टनर्स चुनते हैं, जिनके वे व्यक्तिगत रिलेशनशिप मैनेजर (RM) बन जाते हैं और उनसे रोज़ाना बातचीत करते हैं। "सब लोग आपको अच्छी प्रतिक्रिया नहीं देंगे, लेकिन अगर आप सुनते रहेंगे, तो आप सुधार करते रहेंगे।"

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