अंबाला की नेहा ल्यूक की कहानी बताती है कि कैसे एक बड़ी मुश्किल को एक बड़े मौके में बदला जा सकता है। करीब 20 साल तक एक फाइनेंस कंपनी में कॉर्पोरेट की नौकरी करने के बाद, कोरोना महामारी के दौरान नेहा और उनके पति, दोनों की नौकरी चली गई। निराशा की बजाय, नेहा ने अपनी जमा-पूंजी लगाई और गुरुग्राम में 2 एकड़ जमीन पर 'माला फार्म्स' की शुरुआत की। उनकी दिवंगत मां माला को समर्पित यह छोटा-सा फार्म आज 50 एकड़ का एक विशाल और टिकाऊ इकोसिस्टम बन गया है, जिसकी सालाना कमाई 60 लाख रुपये है।
खेती नहीं, बल्कि एक जीवंत इकोसिस्टम
माला फार्म्स सिर्फ खेती का काम नहीं करता, बल्कि एक पूरा जीवंत इकोसिस्टम है। यहां 25 से ज्यादा गिर और हरियाणवी नस्ल की देसी गायें हैं जो A2 दूध देती हैं। इसके अलावा, 60 देसी बकरियां, 700 से ज्यादा मुर्गियां, बत्तखें और तुर्की भी पाले जाते हैं, जिनका गोबर जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल होता है। फार्म पर 700 से ज्यादा मधुमक्खी के छत्ते हैं, जो शहद देने के साथ-साथ फसलों के परागण में भी मदद करते हैं। नेहा ने दो घोड़ों को भी गोद लिया है।
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महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
नेहा की सबसे खास पहल यह है कि उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया है। वह इन महिलाओं को मधुमक्खी के छत्ते और मधुमक्खियां देती हैं, और फिर उनसे शहद खरीदकर अपने ब्रांड के तहत बेचती हैं। इससे सैकड़ों महिलाओं को घर बैठे कमाई का जरिया मिला है।
शुरुआत में खराब मानसून, कीट और बीमारियों जैसी कई चुनौतियां आईं, लेकिन नेहा ने हार नहीं मानी। आज उनके फार्म के उत्पादों में A2 दूध, पनीर, घी, बकरी का दूध, शहद, अंडे, ऑर्गेनिक चिकन, खपली गेहूं और लकड़ी घानी से बना सरसों का तेल शामिल है।
नेहा कहती हैं कि खेती 24/7 समर्पण मांगती है, लेकिन यह सिर्फ काम नहीं बल्कि एक जीवनशैली है। कॉर्पोरेट की चकाचौंध से ऑर्गेनिक फार्मिंग तक का उनका सफर भारतीय महिलाओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा है, जो यह दिखाता है कि अगर सपनों को समाज की भलाई से जोड़ दिया जाए, तो वह वरदान बन जाते हैं।