एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर ने 36 साल बाद ली विदाई, रेलवे की पटरियों पर छोड़ी अमिट छाप

एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर ने 36 साल बाद ली विदाई, रेलवे की पटरियों पर छोड़ी अमिट छाप

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भारतीय रेलवे की शान और एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर सुरेखा यादव ने 30 सितंबर 2025 को अपनी 36 साल की शानदार सेवा के बाद रिटायरमेंट ले ली। उन्होंने मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) से अपनी आखिरी यात्रा पूरी की। सुरेखा का सफर एक मिसाल है, जिन्होंने पुरुष-प्रधान लोको कैबिन में अपनी जगह बनाई और हजारों महिलाओं को प्रेरित किया।

किसान परिवार से रेलवे की शान तक

महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक किसान परिवार में जन्मीं सुरेखा ने 1988 में रेलवे में असिस्टेंट ड्राइवर के रूप में कदम रखा। उस समय लोकोमोटिव कैबिन में सिर्फ पुरुष ही हुआ करते थे, लेकिन 1989 में पहली बार ट्रेन चलाकर सुरेखा ने इतिहास रच दिया।

उनके करियर में कई अहम पड़ाव आए। 1996 में वह गुड्स ड्राइवर बनीं, 2000 में मोटर वुमन और 2010 में घाट ड्राइवर। उन्होंने लेडीज स्पेशल लोकल ट्रेन से लेकर प्रीमियम ट्रेनें जैसे राजधानी, दुरंतो और वंदे भारत एक्सप्रेस भी चलाई हैं। 2011 में उन्होंने मुंबई से लखनऊ तक एक 'ऑल-वुमन क्रू' के साथ ट्रेन चलाकर एक और रिकॉर्ड अपने नाम किया।

भावुक पल और भविष्य का संदेश

रिटायरमेंट से पहले CSMT पर आयोजित विदाई समारोह में सुरेखा भावुक हो गईं। उन्होंने कहा, "मेरे माता-पिता ने कभी मुझे हतोत्साहित नहीं किया। रेलवे ने मुझे जो सम्मान दिया, उसके लिए मैं आभारी हूं।" उन्होंने अपनी जिंदगी का सबसे अविस्मरणीय दिन बताया।

सेंट्रल रेलवे के सीपीआरओ स्वप्निल निला ने कहा, "सुरेखा ने न सिर्फ रिकॉर्ड बनाए, बल्कि साहस और दृढ़ता की एक ऐसी विरासत छोड़ी है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।" आज भारत में लगभग 1,500 महिला ट्रेन ड्राइवर हैं, और सुरेखा ने ही उनके लिए यह रास्ता बनाया था।

रिटायरमेंट के बाद के अपने प्लान्स पर उन्होंने कहा कि वह अभी छुट्टियां मनाने जा रही हैं, लेकिन उनका संदेश साफ है: "सपने देखो और उन्हें पूरा करो।" सुरेखा यादव की कहानी भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण का एक जीता-जागता प्रतीक है।

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