'कुली' रिव्यू: रजनीकांत की विरासत को एक शानदार ट्रिब्यूट—जबरदस्त एनर्जी, नॉस्टैल्जिया और भरपूर मास अपील से भरपूर।
देवा, उर्फ देवराज (रजनीकांत), एक करिश्माई शख्स हैं, जो देवा मेंशन के मालिक हैं। यहां छात्रों को कम पैसों में रहने की जगह मिलती है। जब उनके करीबी दोस्त राजशेखर (सत्यराज) की अचानक दिल का दौरा पड़ने से मौत हो जाती है, तो देवा को असली डेथ सर्टिफिकेट मिलता है। इसमें मौत की वजह बीमारी नहीं, बल्कि चोट बताई गई है। यह जानकर देवा का खून खौल उठता है और वह कातिल का पता लगाने के लिए विशाखापत्तनम में एक स्मगलिंग रिंग में शामिल हो जाते हैं। हालांकि, इस दौरान वह अनजाने में अपने अतीत के एक छुपे हुए हिस्से को उजागर कर देते हैं, जो रहस्यों, अधूरे कामों और खतरनाक उलझनों से भरा है, जिन्हें सुलझाना अब जरूरी है।
फिल्म की शुरुआत विजाग के एक हलचल भरे पोर्ट से होती है, जहां किंगपिन साइमन (नागार्जुन) और उसका साथी दयाल (सौबिन शाहिर) एक अवैध धंधा चलाते हैं। पुलिस के आदेश के बाद जब वे लाशों को समुद्र में नहीं फेंक पाते, तो वे राजशेखर (सत्यराज) के पास जाते हैं। राजशेखर एक मजदूर था, जिसने एक ऐसी कुर्सी का आविष्कार किया है जो तुरंत लाशों को जलाकर राख कर देती है। यह आविष्कार पहले सरकार ने खतरनाक मानकर खारिज कर दिया था, लेकिन अब यह गलत हाथों में पड़ जाता है। जब राजशेखर की हत्या हो जाती है, तो उसका पुराना दोस्त देवा (रजनीकांत), जो पर्दे के पीछे काम कर रहा था, मैदान में आ जाता है। दोस्त के कातिल का पता लगाने का यह मिशन जल्द ही देवा के अपने अतीत के रहस्यों को खोलता है, जिससे पुराने मसले आज के संघर्ष से जुड़ जाते हैं।
फिल्म का पहला हाफ पूरी तरह से फैंस के लिए बनाया गया है—इसमें गाने, डांस, पंच डायलॉग और भरपूर स्वैग है। हालांकि, यह फिल्म की रफ्तार को थोड़ा धीमा करता है और ऐसे किरदारों को पेश करने में थोड़ा ज्यादा समय लेता है, जिन्हें और जल्दी दिखाया जा सकता था। लेकिन, दूसरा हाफ वह जगह है जहां डायरेक्टर लोकेश कनागराज असल में कमाल दिखाते हैं और दर्शकों को एक शानदार ट्रीट देते हैं। यहां कई कैमियो न सिर्फ दमदार हैं, बल्कि कहानी को एक नया आयाम देते हैं, और सही समय पर आने वाले ट्विस्ट दर्शकों को बांधे रखते हैं।
फिल्म की लंबी-चौड़ी ड्यूरेशन के बावजूद, 'कुली' रजनीकांत की विरासत को एक जोरदार ट्रिब्यूट है, जो एनर्जी, नॉस्टैल्जिया और भरपूर मास अपील से भरी है। अपनी पिछली फिल्म की गलतियों से सीखते हुए, डायरेक्टर लोकेश कनागराज ने इस बार दूसरा हाफ ज्यादा कसा हुआ और असरदार बनाया है। उन्होंने पैन-इंडिया के बड़े स्टार्स को सही तरीके से इस्तेमाल किया है, जिनके किरदार अच्छे से गढ़े गए हैं। ड्रग लॉर्ड साइमन के रोल में नागार्जुन ने अपनी विलेनगिरी को बखूबी निभाया है, जबकि सौबिन शाहिर भी एक बेहतरीन कास्टिंग साबित होते हैं, जिनकी स्क्रीन प्रेजेंस लंबे समय तक याद रहती है। रचिता राम का सरप्राइज रोल तो फिल्म की जान है—वह आसानी से फ्रेम पर राज करती हैं और सबसे स्मूथ व ऑर्गेनिक एक्शन सीक्वेंस में से एक देती हैं। वहीं, उपेंद्र रजनीकांत के शांत लेकिन दमदार राइट-हैंड मैन के रूप में सहज स्वैग दिखाते हैं, और हाई-ऑक्टेन सीक्वेंस में सुपरस्टार का मुकाबला करते हैं।
यकीनन, रजनीकांत ने वही दिया है जो फैंस चाहते हैं—करिश्मा, स्टाइल और एक दमदार स्क्रीन प्रेजेंस, जो बिल्कुल सहज लगती है। फ्लैशबैक वाले हिस्से, खासकर रजनीकांत-सत्यराज के सीन, एक शानदार ट्रीट हैं, क्योंकि 40 साल बाद ये दो दिग्गज एक साथ स्क्रीन पर आए हैं। सत्यराज और श्रुति हासन ने अच्छा सपोर्ट दिया है, और उन्होंने अपने किरदारों को अतिरंजित नहीं होने दिया है। मास अपील और इमोशनल बीट्स दूसरे हाफ को रोमांचक बनाए रखते हैं। रजनीकांत की 'डी-एजिंग' तकनीक तो एकदम मास है—इसे बहुत ही सहजता से किया गया है, जो एक नॉस्टैल्जिक पंच जोड़ता है। फिल्म में श्रुति का किरदार एक तरह से फिल्म की नींव है। यहां तक कि आमिर खान का कैमियो भी स्मार्टली डाला गया है, जो जबरदस्ती का नहीं लगता बल्कि कहानी में रोमांच जोड़ता है। लोकेश ने पिछली फिल्म की गलतियों से सीखते हुए इस बार बेहतर संतुलन बनाया है। उन्होंने रजनीकांत को एक फैनबॉय के उत्साह के साथ निर्देशित किया है, लेकिन अपनी फिल्ममेकिंग स्टाइल को हावी नहीं होने दिया है। उन्होंने स्टाइल, कहानी और एंटरटेनमेंट का शानदार मिश्रण पेश किया है। भले ही यह फिल्म 'कैथी' या 'विक्रम' जितनी महान न हो, लेकिन यह निराश नहीं करती और एक मजेदार अनुभव देती है, जो दर्शकों को बांधे रखता है। अनिरुद्ध का संगीत फिल्म की हाईलाइट है—गाने दर्शकों को खुश करते हैं और BGM एक्शन सीक्वेंस को शानदार बनाता है, हालांकि इमोशनल सीन में थोड़े घिसे-पिटे म्यूजिकल cues का इस्तेमाल किया गया है।
भले ही पहला हाफ थोड़ा और कसा हुआ हो सकता था, लेकिन दूसरा हाफ इसकी भरपाई कर देता है, जो 'कुली' को फैंस के लिए एक हाई-एनर्जी, नॉस्टैल्जिक और मनोरंजक सफर बनाता है। 'कुली' हाल के सालों में रजनीकांत की सबसे धमाकेदार फिल्मों में से एक बनकर उभरती है, जो अपनी पिछली फिल्मों से एनर्जी और स्टाइल के मामले में काफी आगे है। यह सिर्फ डाई-हार्ड फैंस के लिए ही नहीं, बल्कि आम दर्शकों के लिए भी है, क्योंकि यह नॉस्टैल्जिया को दिलचस्प कहानी के साथ संतुलित करती है। फिल्म के कैमियो, खासकर लोकेश की पिछली फिल्मों से भी बेहतर हैं, जो कहानी को जबरदस्ती जोड़े बिना यादगार परफॉर्मेंस देते हैं। हाई-ऑक्टेन एक्शन, करिश्माई स्टार पावर और सही जगह पर रखे गए सरप्राइजेज के साथ, 'कुली' मास अपील और दर्शकों को खुश करने वाले मनोरंजन का एक बेहतरीन मिश्रण है।
और अब, सबसे बड़ा सवाल—क्या यह LCU (लोकेश सिनेमैटिक यूनिवर्स) का हिस्सा है? लोकेश ने फिल्म में चतुराई से "ड्रग" शब्द का इस्तेमाल किया है, जिससे फैंस पर यह फैसला छोड़ दिया गया है कि वे इसे बड़े यूनिवर्स का हिस्सा मानें या एक स्टैंडअलोन कहानी के तौर पर इसका मजा लें।