जंगल से बीनते थे लकड़ी, नंगे पांव जाते थे स्कूल; मजदूर से बने बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस, जोश भर देगी यह कहानी!

जंगल से बीनते थे लकड़ी, नंगे पांव जाते थे स्कूल; मजदूर से बने बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस, जोश भर देगी यह कहानी!

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विदर्भ के एक आदिवासी गांव से बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बनने तक का सफर न्यायमूर्ति यनशिवराज खोबरागड़े ने कड़ी मेहनत और संघर्ष से तय किया है। महाराष्ट्र के भंडारा जिले के आदिवासी गांव रेंगापार में 9 मई, 1966 को जन्मे जस्टिस खोबरागड़े की यात्रा धैर्य, शिक्षा और विपरीत परिस्थितियों पर जीत की मिसाल है।

40 पैसे फीस के लिए बेचते थे लकड़ी

रेंगापार में न बिजली थी और न ही सड़कें। जस्टिस खोबरागड़े का प्रारंभिक जीवन घोर अभाव में बीता। उनके अनपढ़ माता-पिता, गोपीचंद और अनुराधा, ने अपने आठ बच्चों में शिक्षा की अलख जगाई। न्यायमूर्ति खोबरागड़े याद करते हैं, "मुझे याद है कि 40 पैसे की स्कूल फीस भरने के लिए मैं जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करता था।" वह नंगे पांव मीलों चलकर स्कूल जाते थे और परिवार के लिए छोटी-मोटी नौकरियां करते थे। छुट्टियों में खेतों में काम करने के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी।

अंग्रेजी में हुए फेल, आंबेडकर के शब्दों से मिली प्रेरणा

संघर्षों से भरे इस सफर में कई उतार-चढ़ाव आए। वह कक्षा 12 में अंग्रेजी में फेल हो गए, जिससे वह काफी निराश हुए और पढ़ाई छोड़ने का मन बना लिया था। लेकिन उन्होंने दृढ़ संकल्प के साथ फिर से शुरुआत की। उन्होंने बताया कि डॉ. भीमराव आंबेडकर के शब्द, 'शिक्षा शेरनी का दूध है' ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

इंटर की परीक्षा पास करने के बाद, अक्टूबर 1984 में उन्हें काम की तलाश में भटकना पड़ा। इसी दौरान, एडवोकेट जनरल अरविंद बोबडे (जो बाद में CJI बने) के ड्राइवर रामेश्वर से उनकी मुलाकात हुई, जिन्होंने उन्हें बोबडे के घर पर बगीचे में मजदूर की नौकरी दिलवा दी।

मजदूर से बने हाई कोर्ट जज

जस्टिस बोबडे, खोबरागड़े की विनम्रता और दृढ़ संकल्प से प्रभावित हुए और उन्हें अपने कानूनी कार्यालय में क्लर्क की नौकरी की पेशकश की। उन्होंने कहा, 'उस पल ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी।' बोबडे और उनके बेटे शरद के मार्गदर्शन में खोबरागड़े ने काम करते हुए बीकॉम और नागपुर विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की।

2008 में खोबरागड़े ने जिला न्यायपालिका की प्रतियोगी परीक्षा पास की और मुंबई में सिविल जज नियुक्त हुए। इसके बाद वे जिला जज और रजिस्ट्रार बने। अंततः, 7 अक्टूबर, 2022 को उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के जज के रूप में शपथ ली। उन्होंने कहा, "यह मील का पत्थर सिर्फ़ मेरा नहीं है, यह हर वंचित बच्चे के लिए संदेश है कि सपने सच होते हैं।"

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