जब एक आइस हॉकी खिलाड़ी ने अपनी संस्कृति को भी 'डिफेंड' करने का फैसला किया, तो उन्होंने साबित कर दिया कि विरासत सिर्फ़ किताबों में नहीं बचती। वह बचती है उन हाथों में, जो इसे टूटने से पहले थाम लेते हैं। हम बात कर रहे हैं लद्दाख की नूर जहान की, जिन्होंने बर्फ़ पर देश का नाम चमकाने के साथ-साथ मिट्टी में दबी सदियों पुरानी कहानियों को फिर से जीवित करने का जिम्मा उठाया।
खोती जा रही थी प्राचीन कला
लद्दाख में प्राचीन कला और शिल्प की एक लंबी और समृद्ध विरासत है, लेकिन आधुनिकीकरण और ध्यान की कमी के चलते यह सदियों पुरानी कला धीरे-धीरे खोने लगी थी। यह देखते हुए, नूर जहान ने इसे बचाने का फैसला किया।
स्थानीय लोगों को किया प्रशिक्षित
नूर जहान ने न सिर्फ इस प्राचीन कला को संरक्षित करने का संकल्प लिया, बल्कि उन्होंने इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए भी काम किया। उन्होंने स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित किया, ताकि यह सदियों पुरानी विरासत उनके हाथों में सुरक्षित रहे।
नूर जहान ने साबित कर दिया कि खेल की दृढ़ता और समर्पण कला के संरक्षण में भी काम आता है। इस 'Heritage Week' पर, लद्दाख की इस बेटी का साहस और उनकी विरासत को बचाने का प्रयास पूरे देश के लिए एक बड़ी प्रेरणा है।
